चित्रकूट । भगवान श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट के मानिकपुर जंगलों के बीच स्थित शबरी जल प्रपात पर्यटकों एवं तीर्थ यात्रियों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है । बारिश के दिनों में इसका अप्रतिम सौंदर्य अपने मोहपाश में किसी को भी आसानी से जकड़ने के लिए काफी है । वर्तमान में त्रि-जलधारा के वेग व 35 से 40 किमी प्रतिघण्टा की रफ्तार से नीचे गिरती जलराशि जमीन पर बादलों के होने का अहसास करा रही है । यहां पर्यटन विकास की अपार संभावनाएं हैं ।
मध्य प्रदेश के सतना बॉर्डर पर स्थित परासिन पहाड़ से धारकुंडी- मारकुंडी जंगलों के बीच से चित्रकूट में पाठा के जंगलों में कल-कल बहती पयस्वनी नदी आगे चलकर मंदाकिनी के नाम से पहचानी जाती है । ग्राम पंचायत टिकरिया के जमुनिहाई गांव के पास स्थित बंबियां जंगल में पयस्वनी, ऋषि सरभंग आश्रम से निकली जलधारा व गतिहा नाले की जलराशि की त्रिवेणी से शबरी जल प्रपात की छटा यूं मनोहारी दिखती है, मानो आसमान जमीन छूने को बेताब हो । कम पानी होने पर भी एक साथ थोड़ी-थोड़ी दूर पर तीन जलराशियां नीचे गिरती हैं । तीव्र बारिश में यह आपस में मिल जाती हैं । इससे इनके वेग व प्रचंड शोर से अंतर्मन के तार झंकृत हो उठते हैं । करीब 40 फीट नीचे गिरने वाली जलराशि कुंड में तब्दील होकर अथाह गहराई को प्राप्त करती है ।
60 मीटर चौड़े व इससे कुछ अधिक लंबे कुंड से फिर दो जलराशियां नीचे की ओर गिरकर सम्मोहन को और बढ़ा देती हैं । हर क्षण व लगातार यह नजारा आंखों को वहां से हटने नहीं देता है । पाठा के लिए जीवनदायिनी व बाढ़ में इसके अनुपम सौंदर्य को और निखारने की तरफ कदम बढ़ें तो निकट भविष्य में यह देश-दुनिया के सैलानियों को अपनी तरफ खींचने का बड़ा केंद्र बन सकता है । इसके अलावा मानिकपुर तहसील से सटे 263 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में बनने वाले रानीपुर वन्य जीव नेशनल पार्क के अस्तित्व में आने पर यह विशेष धरोहर बनेगा । यहां आने वाले सैलानियों को प्रकृति से सीधे जुड़ने का बड़ा अवसर मिलेगा ।
अभी तक डकैतों की शरणस्थली होने के कारण फिलहाल अंधेरे में रहे इस इलाके को बेहतर बनाने और सुरक्षा इंतजामों को बढ़ावा देने के लिए मौजूदा डीएम विशाख अय्यर और एसपी मनोज कुमार झा पूरी शिद्दत से जुटे हैं । इससे शबरी जल प्रपात की मनोहर छठा देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग प्रतिदिन यहां पहुंचने लगे हैं । पाठा के जंगल में रहने वाले कोल-भील अपने को शबरी मैया का वंशज मानते हैं । बंबिया के जंगल में शबरी आश्रम भी है, जहां मकर संक्रांति को कोल-भीलों का मेला लगता है ।
तत्कालीन डीएम डॉ. जगन्नाथ सिंह ने खोजबीन कर 31 जुलाई 1998 को इसका नामकरण किया था । बारिश के बाद अगस्त से मार्च के बीच यहां का दृश्य काफी मनोहारी होता है । त्रि-जलधारा गिरने वाली जगह को मंदाकिनी कुंड भी कहा जाता है । मान्यता है कि यहीं प्रभु राम ने शबरी के बेर खाने के बाद कुंड में स्नान किया तो मंदाकिनी ने अपना अंश गिराया था । उत्तर प्रदेश में करीब 40 मीटर चौड़ाई में तीन जलराशियों वाले इस जल प्रपात के एकमात्र जलप्रपात होने की प्रबल संभावना है । जिला प्रशासन के सहयोग से पर्यटन विभाग इसकी एक डॉक्यूमेंट्री भी बनवा रहा है । जिसके प्रसार के बाद इस स्थल का भविष्य बहुत ही उज्जवल होने की संभावना है ।
चित्रकूट के प्रमुख समाजसेवी गोपाल भाई बताते हैं कि मऊ गुरुदरी में राघव प्रपात को वहां के लोगों ने पुनर्जीवित किया है । यहीं बरदहा नदी कुंड में गिरकर खत्म हो जाती है । इसी तरह कालिंजर से लेकर चित्रकूट के पूर्वी हिस्से तक सुरम्य कुंडों और झरनों की एक लंबी श्रृंखला है लेकिन इनमें से अधिकांश जल प्रपात अब अपना अस्त्तिव खो चुके हैं, जिन्हें संरक्षण कर जीवित किया जा सकता है ।
जिलाधिकारी विशाख का कहना है कि धारकुंडी का विहंगम कुंड व बेधक का प्रपात किसी हिल स्टेशन जैसा दृश्य प्रस्तुत करता है । पहाड़ियों के बीच कटोरानुमा इस स्थल को भी पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की कई बार कवायद हुईं जो अंजाम तक नहीं पहुंच सकी । कोल्हुआ जंगल में प्राकृतिक गरम और ठंडा कुंड भी हैं । शबरी जल प्रपात बारिश के बाद करीब आठ माह तक विशेष आकर्षण बिखेरता है । जिलाधिकारी विशाख ने जिले में तैनाती के बाद संज्ञान में आते ही इसे विकसित करने का प्रयास शुरू किया गया है ।
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