मऊरानीपुर (झांसी) । सावन माह को भगवान भोलेनाथ की पूजा का पावन माह माना जाता है । लोग विभिन्न शिवालयों में कांवड़ लेकर देवों के देव महादेव का जलाभिषेक करने जाते हैं । महादेव के चमत्कारों को कौन नहीं जानता है । राजा विक्रमादित्य की नगरी और महाकाल के नगर को शायद इसीलिए तिलस्मी कहा जाता है । राजा भोज की नगरी के नाम से प्रसिद्ध कस्बा मऊरानीपर क्षेत्र में भी ऐसा ही एक चमत्कारी शिवलिंग है जो नन्दी महाराज की पीठ पर स्थित है । यही नहीं ऐसा माना जाता है कि कोई अदृश्य शक्ति पूजा- अर्चना करने के बाद गायब हो जाती है । मीडिया ने अपने कैमरे में इसे कैद करने की बहुत कोशिशें की परन्तु सब बेकार रहीं ।
जिला मुख्यालय से करीब 80 किमी दूर मऊरानीपुर के ग्राम रौनी की ऊंची पहाड़ी पर शिवजी का एक मंदिर है । इसे श्रद्धालु केदारेश्वर धाम के नाम से जानते हैं । इस मंदिर में दुर्लभ शिवलिंग है, जो नंदी की पीठ पर स्थापित है । काफी समय पूर्व क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डा. एस.के. दुबे क्षेत्रीय पुरातत्व इकाई की टीम के साथ जब सर्वेक्षण करने में लगे थे तो वहां आसमान की ऊंचाई छू रही इसी पहाड़ी पर बने मंदिर को टीम ने देखा था ।
पुरातत्व विभाग के अध्ययन के बाद यह जानकारी हुई थी कि यह मंदिर कोई साधारण मंदिर नहीं बल्कि 9वीं प्रतिहार कालीन सदी का है । नंदी की पीठ पर शिवलिंग, गरुण पर बैठे विष्णु और आलिंगनबद्ध स्त्री-पुरुष की लघु आकृतियां इस मंदिर की विशेषता हैं । पुरातत्व विभाग अधिकारियों के मुताबिक यह प्रतिमा बेहद दुर्लभ है । मंदिर के गर्भगृह की छत पर पर कमल के पुष्पों की नक्काशी है और मूर्ति के समीप ही नवग्रह बने हैं ।
मंदिर के द्वार पर मां गंगा-यमुना के अलावा काम क्रीड़ारत प्रतिमाएं विद्यमान हैं । ऐसा बताया जाता है कि शिवलिंग सेंड स्टोन का बना हुआ है । मंदिर के पास ही कई अन्य मंदिरों के अवशेष प्राप्त हुए हैं । भगवान भोलेनाथ के दर्शन लाभ के लिए करीब 600 सीढ़ियों द्वारा मंदिर तक पहुंचा जा सकता है । पहाड़ी के शिखर पर मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क भी बना दी गई है । इस सड़क के माध्यम से कार या बाइक से आसानी से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है ।
अब तक बना है यह एक रहस्य
मऊरानीपुर नगर के बरिष्ठ पत्रकार प्रमोद चतुर्वेदी और भगवान केदारेश्वर पर हर वर्ष जाने वाले नगर के संजू विरथरे का कहना है कि मंदिर में बने शिवलिंग पर आज तक कोई पहली पूजा नही कर पाया है । मंदिर के द्वार खुलने से पहले ही कोई अदृश्य शक्ति पूजा करके चली जाती है । यहां आने वाले श्रद्धालुओं का ऐसा भी कहना है कि मंदिर में भगवान की सबसे पहले पूजा महोबा के अमर वीर कहे जाने वाले आल्हा द्वारा की जाती है । वह घोड़े पर सवार होकर पूजा करने आते हैं । कई बार रात्रि में मंदिर परिसर में रुकने वाले श्रद्धालुओं ने घोड़े की टापों को भी सुना है ।
सीता रसोई में आज भी खनकते हैं बर्तन
श्रद्धालुओं का कहना है कि मंदिर से कुछ दूरी पर पत्थरों से एक और कमरा बना हुआ है । लोग इसे सीता की रसोई के नाम से जानते हैं । बताया जाता है कि जब भगवान राम वनवास के लिए निकले थे तो कुछ समय के लिए यहां पर रुके थे । इस रसोई में माता सीता ने भगवान के लिए भोजन बनाया था । रात के समय सीता की रसोई से भी विशाल आकार के पत्थरों से अजीब तरह की आवाजें निकलती हैं,जो किसी बर्तन की तरह प्रतीत होती हैं । मंदिर के सेवादार चिन्नागोटी महाराज की मानें तो उनके पूर्वज कई पीढ़ियों से मंदिर की सेवा करते आ रहे हैं । लेकिन आज तक यह जानकारी नही कर सके कि मंदिर में भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग का सबसे पहले जलाभिषेक करता कौन है ?
सावन मास में उमड़ता है हजारों कांवड़ियों का सैलाब
सावन मास में भगवान शिव जी के धाम केदारेश्वर पर हजारों की संख्या में कांवड़ियों का सैलाब उमड़ता है । दूर-दराज से जल लेकर कांवड़िये भगवान शिव के केदारेश्वर धाम पर जलाभिषेक करते हैं । केन्द्रीय मंत्री उमा भारती का इस मंदिर में पूजा करने आने का कार्यक्रम अक्सर देखा जा सकता है । इसके अलावा अन्य वीवीआईपी भी यहां मत्था टेकने आते रहते हैं । लोगो की सुरक्षा व्यवस्था को देखते हुए पर्याप्त पुलिस बल भी तैनात किया जाता है ।
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